मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

ज्ञानोपनयन-2

"ज्ञानोपनयन देना मुझको "
बोली – क्यों-क्यों-क्यों-क्यों-क्यों-क्यों.
"कुछ वस्तु  पुरातन देखन को "
बोला मैंने उससे जब यों.

वो मंद-मंद मुस्का बोली –
"मैं समझ गयी तेरी बोली
तुम गोल-मोल बातें करके
सूरत दिखलाते हो भोली".

"तुम नहीं समझ पाए मुझको
क्यों मांग रहा ज्ञानोपनयन
मैं संबंधों के बीच नव्य
करना चाहूँ सम्बन्ध चयन".

(प्रेरणा: स्वसा नूतन जी)

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