बुधवार, 25 जून 2014

आखेट कुशलता

तुम चले, चला धीरे-धीरे
मन मेरा चुपके से पीछे। 
तुम रुके, नहीं रुक सका हाय
संयम मेरे मन को खींचे।
क्यूँ रुके, नहीं तब था जाना
अब जान गया चख हैं तीखे।
रुक जाता तो मन मर जाता
आखेट-कुशलता बिन सीखे।

मंगलवार, 24 जून 2014

निःशब्द क्षमा


 
 
 
 
 
 
 



क्षमा किसे मैं करूँ स्वयं से बड़ अपराध किया किसने
माँग रहे तुम क्षमा भूल पर मुझको दंड दिया जिसने
कोमलता के भाव ह्रदय से बन-बनकर तेरे निकले
फिर भी मैं था मौन देख बढ़ गया भाव तेरे पिचले
तुम पर मुझको क्रोध नहीं क्यों शब्द तुम्हारे हैं पिघले
मैं तो खुद को कोस रहा चुपचुप कुछ वर्षों से पिछले
अमा रही जब तक निज मन में तब तक ही मैं था भटके
जब से दरस किया तव का सुषमा मेरे मुख पर मटके।

सोमवार, 16 जून 2014

उठो अंशुमान !

प्रकाश औ' प्रकाशिका 
कर्तव्य साथ छोड़कर 
दे रहे थे देह को 
विराम प्राचि-गेह में। 

प्रकाश ताप व्याज से 
घटा-विधान ओढ़कर 
ले रहा था सुबकियाँ 
अश्रुओं को छोड़कर। 

मलिनता मिटाने को 
खींचती घटा-विधान 
धीरे से खाँसती, पिय 
आई, उठो अंशुमान !