ललित भाव





अकारण 

मेरे वश में नहीं है 
फिर भी प्रयासरत हूँ. 
आशा किञ्चित नहीं 
प्रतीक्षा फिर भी है.


सम्बन्ध


मिलने से परिचित हो जाते है. परिचय कर स्वार्थपूर्ण सम्बन्ध शीघ्र हो सकते हैं लेकिन स्थायी संबंधों की स्थापना में अधिक समय लगता है. स्थायी संबंधों से भी अधिक समय पवित्र सम्बन्ध स्थापित करने में लग जाता है, प्रायः पूरा जीवन.


भावुकता
क्या भावुकता भी अवस्थानुसार शोभती है? समझ नहीं पाता, जीवन का प्रत्येक पड़ाव इतनी भिन्नता लिए क्यों होता है? ........ स्वभाव तो व्यक्ति का 'एक-सा' रहना चाहिए. न भी रहे, कम-से-कम व्यावहारिकता की मौलिकता तो बनी रहे.

संबंध-निर्धारण में संकल्प का सहयोग लें.


संबंधों का निर्धारण तब तक नहीं होता जब तक एकतरफा संकल्प नहीं लिया जाता. या कभी-कभी कोई तीज-त्यौहार सम्बन्ध निर्धारण में अपनी भूमिका निभा जाता है.

अतः त्योहारों का हमारे जीवन में इसलिये भी महत्व है कि हम अपने अवांछित मनोभावों को मार्जित कर लेते हैं.


मिथ्या अभिमान

भावनाओं को बाँधने के प्रयत्न में प्रायः असफल ही होता रहा हूँ.
इसी शिथिलता के वशीभूत होकर वे अपराध सहज रूप से हो जाते हैं जो मुझे संयमित नहीं रहने देते.
अपनत्व, ममत्व जैसे भोले-भाले भाव अपनी लघुता के बावजूद मेरे मिथ्या अभिमान को परास्त कर देते हैं.